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Friday, May 22, 2020

मजबूरों को देखा,


A poem of Umesh chandra srivastava 

मजबूरों को देखा,
सडकों पर,
दूर-दूर से आते पैदल |
सर पर बोझा,
हाथ में झोला |
ऊँगली पकड़े साथ में बच्चे,
कुछ को गोदी में उठाये |
चलती मजबूरिन माँएं ,
पैदल-पैदल |
राहों में कोई दे देता ,
बिस्कुट, पानी,
खिचड़ी, रोटी |
खाती, बचा खुचा रख लेती,
कहती-
आगे खायेंगे ये बच्चे |
माँ का लाड-प्यार सब दिखे,
आंचल में ढक अबोधों को|
चलती माँयें ,
पैदल-पैदल |
 -उमेश चन्द्र श्रीवास्तव 


A poem of Umesh chandra srivastava 

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