month vise

Saturday, February 16, 2019

गंगा


A poem of Umesh chandra srivastava 

गंगा की धारा में,
प्रेम-प्रेम-प्रेम भरा ,
जो भी नहाये मिलती है मुक्ति |
भगीरथ का प्रयास,
निश्चल निष्काम था,
गंगा नहाए तो मिलती है मुक्ति |
गंगा शिव का प्रसाद,
मिटता सारा अवसाद,
जो भी तट आये मिलती है जुगति |
जीवन अनमोल रहा,
इसका नहीं तौल रहा,
जीवन का अंतिम तट, गंगा से मुक्ति |





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Monday, February 11, 2019

हिंदी, हिन्दू , हिंदुस्तान

A poem of Umesh chandra srivastava

हिंदी, हिन्दू , हिंदुस्तान,
यही हमारी है पहचान । 
दूर-देश से जो भी आये ,
वह सब यहं पर हैं मेहमान।

'हिन्द' शब्द संस्कृत का 'सिंधु'
'सिंधु' सिंध नदी में बिहँसा।
आस-पास सिंधु भूमि है ,
यही शब्द ईरानी में जाकर ,
'हिन्दू ' 'औ' 'हिन्दू' कहलाया।
इसका मायने 'सिंध प्रदेश',
धीरे-धीरे ईरानी भी ,
भारत भू भाग को जाने ,
इसी शब्द का अर्थ विस्तार।
हिन्द शब्द भारत हार।

इसी ईरानी का 'ईकं' प्रत्यय ,
'हिन्दीक' बना अर्थ है 'हिन्द' का ,
यूनानी का शब्द 'हिंदीका',
अंग्रेजी में बना 'इंडिया'।

आदि 'हिन्दीक', का विकसित रूप ,
'हिंदी' भी 'हिन्दीक' परिवर्तित।
इसका मूल अर्थ 'हिंदीका' ,
विश्लेषण है किन्तु बाद में ,
भाषा के अर्थों में संज्ञा ,
बना रचा 'औ' हो गया हिंदी।

हिंदी, हिन्दू , हिंदुस्तान,
यही हमारी है पहचान । 
दूर-देश से जो भी आये ,
वह सब यहं पर हैं मेहमान।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...