month vise

Friday, January 18, 2019

होना मेरा

A poem of Umesh chandra srivastava 

होना मेरा ,
घर का कोना-कोना ,
बतलाता है। 
न होना भी ,
घर का कोना-कोना ,
दिखलाता है। 
मेरे होने से ही ,
घर का द्वार-द्वार चमकता ,
न होने पे ,
पूरा का पूरा ,
घर अखर जाता है। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Wednesday, January 9, 2019

बिस्तर पे पड़ी खांसती ही जा रही है माँ




बिस्तर पे पड़ी खांसती ही जा रही है माँ ,
जंजाल सारे सफर की, हांफती है माँ। 
किसे कहे वह बात-हमसफर भी नहीं है ,
पुत्रों की बात कौन करे ?
अपने में रमे हैं। 
किस्सा नहीं, कहानी नहीं,
यह सत्य बात है। 
सदियों से यही झेल रही ,
हम सभी की माँ। 
बिस्तर पे पड़ी खांसती ही जा रही माँ। 



Tuesday, January 8, 2019

धूप आयी, मैं हूँ बैठा


A poem of Umesh chandra srivastava 

धूप आयी, मैं हूँ बैठा,
अंचलों में खुद हूँ ऐठा। 
मुखर उद्गण ताकते, घनघोर से,
क्या सवेरा, प्रातः का अवलोक कर लो। 
दिवस का तो ताप चढ़ता जा रहा है,
रात का शीतल पवन भी आ रहा है। 
क्या यही जीवन नहीं, कुछ तुम तो बोलो,
क्यों अधर सीकर पड़े हो, मुख तो खोलो। 
रात की है मौन वाणी-खेल चलता,
पर दिवस में बोलियों का मेल चलता। 
रात-दिन के ताप का परिमाप कर लो,
जिंदगी के छोर का अनुमान कर लो। 
बस हवस में, मत बिताओ ज़िन्दगानी,
ठहरो देखो-वहां पर उपकार बानी। 
इस जगत का सत्य जानो बस वही है,
ज़िन्दगी की यह कहानी बस सही है। 



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...