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Wednesday, December 9, 2020

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava


काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

गीत गाने आ गया |

खो रही जो बात मैं

उसको बताने आ गया |

रात चंदा ने चकोरी से

कहा तुम जान लो |

इस धरा की तुम रंगीनी

जान लो पहचान लो |

जब भी प्रेमी प्रेमिका से

मुस्कुरा कर बोलता |

वह उसे तुम सी चकोरी

जानकर रस घोलता |

आज समझी हो नादानी

बात यह पहचान लो |



-उमेश श्रीवास्तव

A poem of Umesh Srivastava


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