month vise

Wednesday, May 23, 2018

'प्रकृति' कविता संग्रह से - 8

A poem of Umesh chandra srivastava

प्रकृति तुम्हारा आकर्षण है ,
युग-युग से सुन्दरतम तुम।
जंतु भले यह प्रगट न कर सकें ,
पर मानव तुमसे अविभूत।

तुम्हीं कराती काम वो सारे ,
तुम्हीं दिखाती सुंदरता।
तुम पर मुग्ध हुआ जो प्राणी ,
बना विश्व का वह योद्धा।

युद्ध कराती ,विरह सताती ,
तेरे ही करवट की धुन।
नित्य तुम्हारा भाव निखरता ,
तुम तो हो कुसुमित प्रियहिम।

बहुत बखाना उर्बी तुमने ,
अब तुम बात हमारी सुनो।
तुम पर हूँ अनुरक्त युगों से ,
तुम ही तो आधार मेरी। (धारावाहिक , आगे कल )



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

1 comment:

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...