A poem of Umesh chandra srivastava
प्रकृति तुम्हारा आकर्षण है ,
युग-युग से सुन्दरतम तुम।
जंतु भले यह प्रगट न कर सकें ,
पर मानव तुमसे अविभूत।
तुम्हीं कराती काम वो सारे ,
तुम्हीं दिखाती सुंदरता।
तुम पर मुग्ध हुआ जो प्राणी ,
बना विश्व का वह योद्धा।
युद्ध कराती ,विरह सताती ,
तेरे ही करवट की धुन।
नित्य तुम्हारा भाव निखरता ,
तुम तो हो कुसुमित प्रियहिम।
बहुत बखाना उर्बी तुमने ,
अब तुम बात हमारी सुनो।
तुम पर हूँ अनुरक्त युगों से ,
तुम ही तो आधार मेरी। (धारावाहिक , आगे कल )
प्रकृति तुम्हारा आकर्षण है ,
युग-युग से सुन्दरतम तुम।
जंतु भले यह प्रगट न कर सकें ,
पर मानव तुमसे अविभूत।
तुम्हीं कराती काम वो सारे ,
तुम्हीं दिखाती सुंदरता।
तुम पर मुग्ध हुआ जो प्राणी ,
बना विश्व का वह योद्धा।
युद्ध कराती ,विरह सताती ,
तेरे ही करवट की धुन।
नित्य तुम्हारा भाव निखरता ,
तुम तो हो कुसुमित प्रियहिम।
बहुत बखाना उर्बी तुमने ,
अब तुम बात हमारी सुनो।
तुम पर हूँ अनुरक्त युगों से ,
तुम ही तो आधार मेरी। (धारावाहिक , आगे कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
सजीव चित्रण ।
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