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Saturday, March 23, 2019

अबकी होली में कोई रंगो की बरसात न हुई

A poem of Umesh chandra srivastava



अबकी होली में कोई रंगो की  बरसात न हुई,
अबकी होली में कोई मधुर सी सौगात न हुई।

वह दिन और थे जब रंग में रंगे हम रहते ,
गुझिया, पापड़ 'औ' समोसे को तल-तल रखते।

अब हम हैं और हमारे संघी साथी ,
वक्त का दौर है अब कोई नहीं बाराती।

अब तो आएंगे बहुत सधे हुए मेहमाँ भी ,
चाय वह फीकी और नमकीन थोड़ा लेंगे ही।

बहुत उम्मीद की होली है और बोली भी ,
अबकी होली में कोई सावन सी बरसात न हुई।  




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Wednesday, March 20, 2019

होली

A poem of Umesh chandra srivastava



होली रंग अबीर का ,
प्रेम मिलान त्यौहार।
आपस में हम बैठ के ,
बाटें यह व्यवहार।

होली के रंग में रंगे ,
सड़क गली मैदान।
सब में दिखे एक रंग,
मस्ती में हुड़दंग ।

प्रेमी के संग प्रेम का ,
संघी के संग दंग।
होली में जब हम मिलें ,
देखो फिर तो भंग।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Saturday, March 16, 2019

हे भारत के भाग्य विधाता

A poem of  Umesh chandra srivatava


यह अवसर जाने न पाए ,
लोकतंत्र का पर्व है आया।
अपने  वोटों की कीमत का ,
बड़ा सुनहरा अवसर आया।

किसको वोट करेंगे हम सब ,
इसपर जम कर मंथन करलो ।
लेकिन वोट अवश्य ही देना,
हे भारत के भाग्य विधाता।




 उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of  Umesh chandra srivatava 

Friday, March 8, 2019

देवी नहीं , भारत की नारी

A poem of Umesh chandra srivastava



देवी नहीं , भारत की नारी ,
पतवार बनो तुम सुलभ दुलारी।
जग को तुम पर नाज़ है।
भारत की गौरव गाथा तुम।
अपना देश महान है।


सदा परीक्षा से गुज़री तुम ,
सीता , सती , सावित्री तुम।
तुम भारत की वीर सपूती ,
तुम पर सब कुरबान है।

सदा-सदा से लाज बचाया ,
सदा-सदा संघर्ष करो।
हम सब वीर सपूत जहां के ,
तुम पर सबको नाज़ है।

सुलभ दृष्टि, ममता की छाया,
पुत्री, माँ, बहना हो तुम।
कर्मावती, दुर्गावती तुम हो ,
तुम पर सब बलिदान है। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

Sunday, March 3, 2019

एक बार शिव सपने आये

 A poem of Umesh vhandra srivastava



एक बार शिव सपने आये ,
कहन लगे मन अति हरषाये।
जग के मानव क्यों अकुलाये ,
मानव हित सब काम करे वह।
लोभ मोह से मुक्त रहे सब ,
यही भाव हमको सरसाये ।
           एक बार शिव सपने आये।

लोक विराग को त्याग सभी जन ,
मानव से अनुराग बढाए ।
पशु-पक्षी-सब जीव जंतु को ,
अपने वह परिवार में लाये ।
           एक बार शिव सपने आये।

लोक की बातें लोक में होवे ,
देवलोक की देवलोक में।
मत इस भ्रम में लोक समायें ,
अपना काम वह करते जाएँ।
           एक बार शिव सपने आये।



उमेश  चंद्र श्रीवास्तव -
 A poem of Umesh vhandra srivastava 

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...