poem by Umesh chandra srivastava 
मुबारक यहाँ। 
सत्य की ज्योति ,
हरदम ही जलती रहे। 
सत्य ही है वही ,
सबका का हित जो करे। 
सत्य को खोलना ,
यहां मुश्किल बहुत। 
सत्य खिलता ,
सदा आवरण में सुखद। 
सत्य की बानगी ,
हर तरफ है इधर। 
राम बन को चले ,
माता झुंझला गयी। 
मात को तब वही ,
सत्य कहकर चले। 
वन में साधू-सन्यासी ,
ऋषि हैं बहुत ,
उनसे ज्ञानों का अर्जन करूंगा सदा। 
माता सुनकर प्रफुल्लित ,
हृदय मग्न हो ,
राम को वन गमन का ,
आशीष दिया। 
ऐसे कितने उदाहरण ,
पड़े हैं यहाँ ,
वक्त आने पे ,
'औ' खोल रखूंगा मैं। 
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

No comments:
Post a Comment