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Saturday, November 25, 2017

रमई काका-३

A poem of Umesh chandra stivastava 

रमई काका ,
बहुत याद आते। 
गर-आज वो होते ,
तो बताते -क्या सही ,
क्या गलत। 
अब कौन है  ,
यह बताने के लिए ,
यह समझाने के लिए। 
अब तो-हम ,
पूरी तरह से ,
स्वछन्द हो गए। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 
A poem of Umesh chandra stivastava 

Thursday, November 23, 2017

रमई काका -२

poem of Umesh chandra srivastava

कितने सुहाने दिन ,
जब हम स्वतन्त्र थे ,
सब कुछ कहने-चलने ,
खाने बताने के लिए।
मगर अब हम बड़े हो गए ,
यानि समझदारी के ,
उस पड़ाव पर खड़े हो गए ,
जहाँ सब नाप-तौल ,
जहाँ सब नफा मुनाफा ,
सब बचा खुचा को ,
बनाने के चक्कर में ,
सवांरने के लिए ,
सिर्फ स्वतंत्रता को छोड़कर। (जारी... )


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem of Umesh chandra srivastava 

Tuesday, November 21, 2017

रमई काका -1

poem by Umesh chandra srivastava

रमई काका ,
बहुत याद आते। 
जब भी पानी की फुहारें-छिटकतीं। 
जब भी आँखों का पानी झरता। 
जब भी बेहयायी नाचती। 
जब भी लुटेरे-लूट जाते कुनबा। 
रमई काका ,
बहुत याद आते।     (जारी )




उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 
poem by Umesh chandra srivastava

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...