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Saturday, November 25, 2017

रमई काका-३

A poem of Umesh chandra stivastava 

रमई काका ,
बहुत याद आते। 
गर-आज वो होते ,
तो बताते -क्या सही ,
क्या गलत। 
अब कौन है  ,
यह बताने के लिए ,
यह समझाने के लिए। 
अब तो-हम ,
पूरी तरह से ,
स्वछन्द हो गए। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 
A poem of Umesh chandra stivastava 

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