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Saturday, February 16, 2019

गंगा


A poem of Umesh chandra srivastava 

गंगा की धारा में,
प्रेम-प्रेम-प्रेम भरा ,
जो भी नहाये मिलती है मुक्ति |
भगीरथ का प्रयास,
निश्चल निष्काम था,
गंगा नहाए तो मिलती है मुक्ति |
गंगा शिव का प्रसाद,
मिटता सारा अवसाद,
जो भी तट आये मिलती है जुगति |
जीवन अनमोल रहा,
इसका नहीं तौल रहा,
जीवन का अंतिम तट, गंगा से मुक्ति |





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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