A poem by Umesh chandra srivastava
मैं उस जनपद का कवि हूँ
मैं उस जनपद का कवि हूँ
जहाँ पन्त निराला रहते थे
मैं उस जनपद का कवि हूँ
जहाँ भाषा वैज्ञानिक रहते थे
मैं उस जनपद का कवि हूँ
जहाँ सुभद्रा महादेवी का
अमर गान रहा
मैं उस जनपद का कवि हूँ
जहाँ से सरस्वती पत्रिका का
निकलना फिर से शुरू हुआ
मैं उस जनपद का कवि हूँ
जहाँ सरस काव्य की धारा है
अनमोल सितारे आज यहाँ
कहते यह देश पिआरा है
यह जग भर का उजियारा है
जन मन का पालनहारा है
मैं उस जनपद का कवि हूँ
जहाँ केवट ने पांव पखारे थे
सब जन के राम पिआरे को
गंगा के पार उतारे थे
मैं उस जनपद का कवि हूँ'
(आगे फिर कभी)
-उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
A poem by Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment