(१ )
प्रेम उपासना ,प्रेम तपस्या ,प्रेम जगत व्यव्हार है ,
प्रेम बिना कुछ भी संभव नहीं ,प्रेम मानों का द्वार है।
प्रेम के चलते हम सब मिलते ,प्रेम परस्पर चलता है ,
मगर बाँवरे कुछ ऐसे हैं ,जिन्हें प्रेम यह खलता है।
(२ )
चंदा की चकोरी से कोई बात नहीं है ,
लगता है कई दिन से मुलाकात नहीं है।
वह रोज़ तो निश्चित है जब चाँद खिलेगा ,
तब चाँद स्वयं आके चकोरी से मिलेगा।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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