month vise

Tuesday, August 22, 2017

दो बिम्ब

poem by Umesh chandra srivastava
                 
                    (१)
आस्था का मंदिर बनवाने से बेहतर ,
आस्था का बीज बोया जाये।
समदर्शी बनो-भेद-भाव  त्याग ,
चलो प्रेम का फूल खिलाया जाये।
                   (२)
कभी अनुदान की बातें , कभी निष्प्राण सी घातें ,
समय का चक्र ऐसा है -मिले सब बात की बातें।
अनुग्रह कर रहे हैं जो-समझ लो स्वार्थ कोई है ,
भला बोलो इस दुनिया में कहाँ सौगात की बातें।




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...