poem of Umesh chandra srivastava
मुट्ठियां मत भींचो ,
तोरियां मत चढ़ाओ।
अंगार मत बोलो -
खोलो-अपने मन का द्वार ,
खोलो-अपने मन का द्वार ,
जहाँ प्रेम निश्छलता ,
ले रही है अंगड़ाई।
सत्य को पहचानो ,
अंधता त्यागो ,
आगे खाई है ,
जहां से लौटना ,
मुश्किल है भाई ,
मुश्किल है भाई।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem of Umesh chandra srivastava
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