A poem of Umesh vhandra srivastava
एक बार शिव सपने आये ,
कहन लगे मन अति हरषाये।
जग के मानव क्यों अकुलाये ,
मानव हित सब काम करे वह।
लोभ मोह से मुक्त रहे सब ,
यही भाव हमको सरसाये ।
एक बार शिव सपने आये।
लोक विराग को त्याग सभी जन ,
मानव से अनुराग बढाए ।
पशु-पक्षी-सब जीव जंतु को ,
अपने वह परिवार में लाये ।
एक बार शिव सपने आये।
लोक की बातें लोक में होवे ,
देवलोक की देवलोक में।
मत इस भ्रम में लोक समायें ,
अपना काम वह करते जाएँ।
एक बार शिव सपने आये।
एक बार शिव सपने आये ,
कहन लगे मन अति हरषाये।
जग के मानव क्यों अकुलाये ,
मानव हित सब काम करे वह।
लोभ मोह से मुक्त रहे सब ,
यही भाव हमको सरसाये ।
एक बार शिव सपने आये।
लोक विराग को त्याग सभी जन ,
मानव से अनुराग बढाए ।
पशु-पक्षी-सब जीव जंतु को ,
अपने वह परिवार में लाये ।
एक बार शिव सपने आये।
लोक की बातें लोक में होवे ,
देवलोक की देवलोक में।
मत इस भ्रम में लोक समायें ,
अपना काम वह करते जाएँ।
एक बार शिव सपने आये।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh vhandra srivastava
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