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Sunday, March 3, 2019

एक बार शिव सपने आये

 A poem of Umesh vhandra srivastava



एक बार शिव सपने आये ,
कहन लगे मन अति हरषाये।
जग के मानव क्यों अकुलाये ,
मानव हित सब काम करे वह।
लोभ मोह से मुक्त रहे सब ,
यही भाव हमको सरसाये ।
           एक बार शिव सपने आये।

लोक विराग को त्याग सभी जन ,
मानव से अनुराग बढाए ।
पशु-पक्षी-सब जीव जंतु को ,
अपने वह परिवार में लाये ।
           एक बार शिव सपने आये।

लोक की बातें लोक में होवे ,
देवलोक की देवलोक में।
मत इस भ्रम में लोक समायें ,
अपना काम वह करते जाएँ।
           एक बार शिव सपने आये।



उमेश  चंद्र श्रीवास्तव -
 A poem of Umesh vhandra srivastava 

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