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Monday, December 31, 2018

नया वर्ष सावन होगा

A poem of Umesh chandra srivastava

बीता वर्ष सुखद पावन था,
नया वर्ष सावन होगा।
मिथकों की न डोर चलेगी,
सत्य युक्त तन-मन होगा।

भय का सब माहौल गया अब,
निर्भय बन आगे आओ।
कौन दुष्ट है जो यह करता,
उसको मुक्की दिखलाओ।

नव नूतन यह वर्ष हमारा,
सब जन लोग प्रफुल्लित हो।
प्रेम-प्यार का रस खुब बरसे,
पूरा जग अभिसिंचित हो।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava

Thursday, December 27, 2018

आज तारे झांकते हैं आँख खोले

A poem of Umesh chandra sriavstava


आज तारे झांकते हैं आँख खोले,
मत कहो, जो भी हो करना ,
कर लो हौले।
सृष्टि का नियम-सदा से रात ही है,
कर्म का खिलना सदा से प्रात ही है।
कहो जीवन के सफर में खो गए क्या ?
पा गए कुछ सार्थक सो गए क्या ?
जब भी सोओगे-सदा है ताप बढ़ता,
ज़िन्दगी के छोर में यह समय खलता।
मत रुको, बस चलते जाना ज़िन्दगी है।
एकला पथ पे चलना - बंदगी है।
तुम कहो अनुहार से जीवन सफल है।
मत कहो-बस बीतती यह ज़िन्दगी है।   



उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra sriavstava 


Friday, December 21, 2018

एक कविता

A poem of Umesh chandra srivastava 


एक पल में बदल जाए ,
संसार यही है। 
कहीं दुःख है ,
कहीं सुख ,
व्यवहार यही है। 
आते हैं लोग ,
'औ' चले जाते हैं यहां ,
जिसका भी कर्म श्रेष्ठ ,
पतवार वही है। 
कुछ लोग निपट जाते ,
अपने में तिर हुए। 
कुछ सरस ही खिल जाते ,
संसार यही है। 
कहने को बाज़ीगर,
खुदा , भगवान यहां पे। 
पर देखा क्या किसी ने ,
संसार यही है। 
जहां झूठ का मुलम्मा ,
दीवार ढही है ,
सच्चे का बोल-बाला ,
संसार यही है। 
 



 उमेश चंद्र श्रीवास्तव -  
A poem of Umesh chandra srivastava 

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...