A poem of Umesh chandra sriavstava
आज तारे झांकते हैं आँख खोले,
मत कहो, जो भी हो करना ,
कर लो हौले।
सृष्टि का नियम-सदा से रात ही है,
कर्म का खिलना सदा से प्रात ही है।
कहो जीवन के सफर में खो गए क्या ?
पा गए कुछ सार्थक सो गए क्या ?
जब भी सोओगे-सदा है ताप बढ़ता,
ज़िन्दगी के छोर में यह समय खलता।
मत रुको, बस चलते जाना ज़िन्दगी है।
एकला पथ पे चलना - बंदगी है।
तुम कहो अनुहार से जीवन सफल है।
मत कहो-बस बीतती यह ज़िन्दगी है।
आज तारे झांकते हैं आँख खोले,
मत कहो, जो भी हो करना ,
कर लो हौले।
सृष्टि का नियम-सदा से रात ही है,
कर्म का खिलना सदा से प्रात ही है।
कहो जीवन के सफर में खो गए क्या ?
पा गए कुछ सार्थक सो गए क्या ?
जब भी सोओगे-सदा है ताप बढ़ता,
ज़िन्दगी के छोर में यह समय खलता।
मत रुको, बस चलते जाना ज़िन्दगी है।
एकला पथ पे चलना - बंदगी है।
तुम कहो अनुहार से जीवन सफल है।
मत कहो-बस बीतती यह ज़िन्दगी है।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra sriavstava
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