A poem of Umesh chandra srivastava
एक पल में बदल जाए ,
संसार यही है।
कहीं दुःख है ,
कहीं सुख ,
व्यवहार यही है।
आते हैं लोग ,
'औ' चले जाते हैं यहां ,
जिसका भी कर्म श्रेष्ठ ,
पतवार वही है।
कुछ लोग निपट जाते ,
अपने में तिर हुए।
कुछ सरस ही खिल जाते ,
संसार यही है।
कहने को बाज़ीगर,
खुदा , भगवान यहां पे।
पर देखा क्या किसी ने ,
संसार यही है।
जहां झूठ का मुलम्मा ,
दीवार ढही है ,
सच्चे का बोल-बाला ,
संसार यही है।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment