A poem of Umesh chandra srivastava 
होना मेरा ,
घर का कोना-कोना ,
बतलाता है। 
न होना भी ,
घर का कोना-कोना ,
दिखलाता है। 
मेरे होने से ही ,
घर का द्वार-द्वार चमकता ,
न होने पे ,
पूरा का पूरा ,
घर अखर जाता है। 
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 
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