बिस्तर पे पड़ी खांसती ही जा
रही है माँ ,
जंजाल सारे सफर की, हांफती
है माँ।
किसे कहे वह बात-हमसफर भी
नहीं है ,
पुत्रों की बात कौन करे ?
अपने में रमे हैं।
किस्सा नहीं, कहानी नहीं,
यह सत्य बात है।
सदियों से यही झेल रही ,
हम सभी की माँ।
बिस्तर पे पड़ी खांसती ही जा
रही माँ।
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