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Wednesday, January 9, 2019

बिस्तर पे पड़ी खांसती ही जा रही है माँ




बिस्तर पे पड़ी खांसती ही जा रही है माँ ,
जंजाल सारे सफर की, हांफती है माँ। 
किसे कहे वह बात-हमसफर भी नहीं है ,
पुत्रों की बात कौन करे ?
अपने में रमे हैं। 
किस्सा नहीं, कहानी नहीं,
यह सत्य बात है। 
सदियों से यही झेल रही ,
हम सभी की माँ। 
बिस्तर पे पड़ी खांसती ही जा रही माँ। 



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