A poem of Umesh chandra srivastava
तुम विकट समय,
अवतरित हुए।
मूर्ति भंजक,
सबके रंजक।
तुम कहाँ गये ,
तुम हो तो बसे ,
सबके मन ह्रदय में-
कमल सदृश्य।
तुम राग-विराग में ,
चूर रहे।
पर लिखा-
बहुत ही दृढ होकर।
कबिरा की वाणी को गाया ,
उनकी वाणी को दोहराया।
गर्जन तेरा सब ,
अमर रहे ,
ऐसी कामना है खंजक।
तुम विकट समय,
अवतरित हुए।
मूर्ति भंजक,
सबके रंजक।
तुम कहाँ गये ,
तुम हो तो बसे ,
सबके मन ह्रदय में-
कमल सदृश्य।
तुम राग-विराग में ,
चूर रहे।
पर लिखा-
बहुत ही दृढ होकर।
कबिरा की वाणी को गाया ,
उनकी वाणी को दोहराया।
गर्जन तेरा सब ,
अमर रहे ,
ऐसी कामना है खंजक।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
A poem of Umesh chandra srivastava
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