A poem of Umesh chandra srivastava
मिट्टी-मिट्टी सोना उगले,
सोना-सोना मोती।
देश हमरा सर्वश्रेष्ठ है,
काहे को तू सोती।
सोना जीवन का वसूल नहीं,
जगना-जगना भाई।
जागोगे तब ही आगे हो,
बरसाओगे मोती।
अब तो भइया गजब ज़माना,
सत्ता खातिर होती।
लोगों को आपस में भिड़वाके ,
काट रहे हैं गोटी।
आओ देश सँवारे फिर से ,
कहाँ गयी क्यों सोती।
नारी धर्म निभाओ फिर से ,
देश तुम्हीं से होती।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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