A poem of Umesh chandra srivastava
जब मैं प्रेम में ,
होता हूँ तो ,
तुम कैसे लगते हो।
कह नहीं सकता ,
बस जी करता ,
है कि तुम-
हममें समां जाओ
या फिर मैं-
तुममे समा जाऊं।
जब मैं प्रेम में
होता हूँ तो ,
लगता है
कि समय कैसे ,
बीत गया।
बेरहम समय ,
कितना क़साई है ,
कि मोहलत ही नहीं देता।
प्रेम तृप्ति हुई नहीं ,
कि समय बीत गया।
जब मैं प्रेम में ,
होता हूँ तो ,
समय को बहुत कोसता हूँ।
जब मैं प्रेम में ,
होता हूँ तो ,
अंदर का,
सारा श्रोता ,
स्रोत बन जाता है।
जब मैं प्रेम में ,
होता हूँ तो
जब मैं प्रेम में ,
होता हूँ तो ,
तुम कैसे लगते हो।
कह नहीं सकता ,
बस जी करता ,
है कि तुम-
हममें समां जाओ
या फिर मैं-
तुममे समा जाऊं।
जब मैं प्रेम में
होता हूँ तो ,
लगता है
कि समय कैसे ,
बीत गया।
बेरहम समय ,
कितना क़साई है ,
कि मोहलत ही नहीं देता।
प्रेम तृप्ति हुई नहीं ,
कि समय बीत गया।
जब मैं प्रेम में ,
होता हूँ तो ,
समय को बहुत कोसता हूँ।
जब मैं प्रेम में ,
होता हूँ तो ,
अंदर का,
सारा श्रोता ,
स्रोत बन जाता है।
जब मैं प्रेम में ,
होता हूँ तो
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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