A poem of Umesh chandra srivastava
दम तोड़ती कविता,
घिघियाती कविता ,
राह की तलाश में ,
भटकती कविता।
तमाम धाराओं ,
आंदोलन में ,
सिमटती कविता।
हर कालावधि में ,
प्रवंचना की पात्र ,
बनती कविता।
लगातार-
तमाम अवरोधों ,
विरोधों को सहती कविता ,
बराबर चल रही है।
या बराबर खल रही है।
क्या किया जाए ,
इस कविता को लेकर।
मौन पड़ी ,
पुकार रही ,
या फिर ,
कुंडली मार रही ,
इस कविता का !
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umehs chandra srivastava
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