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Thursday, February 1, 2018

छांट

A poem of Umesh chandra srivastava

जीवन की आंव में ,
सारे दांव चल चुके।
अब मोहताज ,
दाना पाने को।
पूरे जीवन -
सबको काटा-छाटा !
तो अब , जीवन के ,
इस ठौर में ,
छांट दिए गए।
समाज , कुटुंब
और परिवार से भी।



उमेश चंद्र श्रीवस्तव-
A poem of Umesh chandra srivastava 

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