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Wednesday, February 28, 2018

निकल सको तो हे नेता जी

A poem of Umesh chandra sarivastava

निकल सको तो हे नेता जी ,
जुमलों से तुम निकल सको।
बड़ी आंधियां आतीं हैं जब ,
सब सरसाये लगते हैं।
कोना अतरा खोज-खाज के ,
सब ओलियाये लगते हैं।

निकल सको तो हे नेता जी ,
झूठ मार्ग से निकल सको।
मत भरमाओ जनता को तुम ,
सही मार्ग दिखलाओ बस।
अपनी करनी का तुम चिट्ठा ,
सही-सही बतलाओ तुम।
यह क्या-जो अपराध किया है ,
सांठ-गाँठ को त्यागो तुम।
निकल सको तो हे नेता जी ,
बतरंगी से निकल सको। (क्रमशः )




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra sarivastava 

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