A poem of Umesh chandra srivastava
कसर कोई नहीं रह जाये , पूरी जिन्दगानी में ,
यह मौका फिर नहीं मिलता-यही जन की कहानी है।
२.
शहर के हर तिराहे पे-मिलेंगे मनचले एैसे ,
कि जैसे फेकदानी से पकड़ लेंगे वह हर पंछी।
निगाहों में दीवानापन-यही उनकी निशानी है ,
बिदक कर बात वह करते-यही उनकी चिन्हानी है।
३.
तुम्हारे पास कुछ तो है , जहां से हम खींचे आते ,
बहुत पैबंद रखती हो - कहाँ से यह हुनर सीखा।
बताओ इस अदा को हम-कहाँ , क्या नाम भी रक्खें,
उठाकर फेर लेती हो- यही उल्फत दीवानी है।
१.
हक़ीक़त ज़िंदगानी है 'औ' बाकी आग-पानी है,
वो पगली तो दीवानी है 'औ ' बाकी आग पानी है।कसर कोई नहीं रह जाये , पूरी जिन्दगानी में ,
यह मौका फिर नहीं मिलता-यही जन की कहानी है।
२.
शहर के हर तिराहे पे-मिलेंगे मनचले एैसे ,
कि जैसे फेकदानी से पकड़ लेंगे वह हर पंछी।
निगाहों में दीवानापन-यही उनकी निशानी है ,
बिदक कर बात वह करते-यही उनकी चिन्हानी है।
३.
तुम्हारे पास कुछ तो है , जहां से हम खींचे आते ,
बहुत पैबंद रखती हो - कहाँ से यह हुनर सीखा।
बताओ इस अदा को हम-कहाँ , क्या नाम भी रक्खें,
उठाकर फेर लेती हो- यही उल्फत दीवानी है।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava