A poem of Umesh chndra srivastava
देश प्रेम , मातृ प्रेम , सहोदरता बढ़े ,
ऐसा ही मुहीम चलाना चाहिए।
भक्ति-भाव , आस्था का पुंज बने वो ,
ऐसा ही मनुष्य बनाना चाहिए।
जगहित कार्य करे , स्वार्थ से परे ,
ढीली ढाली बात नहीं , नियम से चले।
बात-बात में उसकी शीरी वाणी हो ,
ऐसा ही मनुष्य बनाना चाहिए।
मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए ,
कोई कारखाना चलाना चाहिए।
देश प्रेम , मातृ प्रेम , सहोदरता बढ़े ,
ऐसा ही मुहीम चलाना चाहिए।
भक्ति-भाव , आस्था का पुंज बने वो ,
ऐसा ही मनुष्य बनाना चाहिए।
जगहित कार्य करे , स्वार्थ से परे ,
ढीली ढाली बात नहीं , नियम से चले।
बात-बात में उसकी शीरी वाणी हो ,
ऐसा ही मनुष्य बनाना चाहिए।
मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए ,
कोई कारखाना चलाना चाहिए।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chndra srivastava
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