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Saturday, July 28, 2018

हक़ीक़त ज़िंदगानी है 'औ' बाकी आग-पानी है,

A poem of Umesh chandra srivastava

१. 
हक़ीक़त ज़िंदगानी है 'औ' बाकी आग-पानी है, 
वो पगली तो दीवानी है 'औ ' बाकी आग पानी है।
कसर कोई नहीं रह जाये , पूरी जिन्दगानी में ,
यह मौका फिर नहीं मिलता-यही जन की कहानी  है।

२.
शहर के हर तिराहे पे-मिलेंगे मनचले एैसे ,
कि जैसे फेकदानी से पकड़ लेंगे वह हर पंछी।
निगाहों में दीवानापन-यही उनकी निशानी है ,
बिदक कर बात वह करते-यही उनकी चिन्हानी है।

३.
तुम्हारे पास कुछ तो है ,  जहां से हम खींचे आते ,
बहुत पैबंद रखती हो - कहाँ से यह  हुनर सीखा।
बताओ इस अदा को हम-कहाँ , क्या नाम भी रक्खें,
उठाकर फेर लेती हो- यही उल्फत दीवानी है।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव - 
  A poem of Umesh chandra srivastava 

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