A poem of Umesh chandra srivastava
मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए ,
कोई कारखाना चलाना चाहिए।
नट , बोल्ट , पेंच सब दुरुस्त हो जहाँ ,
बुद्धि 'औ' विवेक लगाना चाहिए।
जहां सदाचार , ईमान पाठ हो ,
सत्य , प्रेम दीपक जलाना चाहिए।
वहां पे मनुष्य जितने भी बने वो ,
सबमे मिटाना चाहिए। (क्रमशः )
मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए ,
कोई कारखाना चलाना चाहिए।
नट , बोल्ट , पेंच सब दुरुस्त हो जहाँ ,
बुद्धि 'औ' विवेक लगाना चाहिए।
जहां सदाचार , ईमान पाठ हो ,
सत्य , प्रेम दीपक जलाना चाहिए।
वहां पे मनुष्य जितने भी बने वो ,
सबमे मिटाना चाहिए। (क्रमशः )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
A poem of Umesh chandra srivastava
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