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Friday, July 27, 2018

मुझको तो ज़माने से कहीं कोई गिला नहीं

A poem of umesh chandra srivastava

मुझको तो ज़माने से नहीं कोई है गिला ,
जो भी मिला उसी से बढ़ाया है सिलसिला।
कहने को मुकद्दर भी बड़ी चीज़ है मगर ,
तदबीर के बिना भी कभी कुछ नहीं मिला।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of umesh chandra srivastava 

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