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Wednesday, November 28, 2018

हरिचरना

A poem of Umesh chandra srivastava

वह जो हरिचरना है ,
मोटा गया है।
खाते-खाते ,
सोटा गया है।

पहले पुरानी पार्टी में था ,
खूब जय बोला ।
लोटा भर-भर नहाया ,
न जाने अब ,
पता नहीं क्यों ?
नई आयी सत्ताधारी पार्टी का ,
कटोरा बन गया है।

हरिचरना की कोई ,
नीति-रीति स्पष्ट नहीं है।
जहां लोटा भरे ,
वही पोखरा चुन लेता है।
मरदजात  , कमबख्त-
अव्वल दर्जे का पैजामा है।

क्या किया जाए ,
अब तो हरिचरना जैसे बहुत हैं ! 
कहाँ-कहाँ डोल ,
थाली पीटा जाये ,
लोटा धारियों की जमात में।




 उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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