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Tuesday, May 23, 2017

मौन भी अभिव्यंजना है

poem by Umesh chyandra srivastava

मौन भी अभिव्यंजना है ,
शब्द यहं पर कहाँ ठहरे।
पर बताओ अर्थ में विस्तार ,
कितना ही सुखद है।

बात सब ही बोलते हैं ,
मौन, सम्भाषण नहीं।
पर बताओ अर्थ में ,
अड़चन कहाँ पर है यहाँ।

वह खड़ी अपलक देखो-
भीग के कुछ प्रेम रस में।
या विरह के कुछ अनोखे ,
संयोग की इच्छा को आतुर।

मौन उसका बोलता है ,
शब्द में बातें कहाँ यह।
मौन ही साधक रहा है ,
गौर से देखो अगर तुम।

सर्जना के क्षण में देखो -
मौन का कितना ही रस है।
मौनता के बल पे बंधू ,
सृष्टि का विस्तार समझो।

आनंद के अनमोल क्षण में ,
मौन से बढ़िया क्या भाषण ?
मौन होकर ले लिया है ,
रससिक्ति का पहर वह।
         मौन भी अभिव्यंजना है ,
         शब्द यहं पर कहाँ ठहरे।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chyandra srivastava 

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