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Wednesday, December 9, 2020

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava


काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

गीत गाने आ गया |

खो रही जो बात मैं

उसको बताने आ गया |

रात चंदा ने चकोरी से

कहा तुम जान लो |

इस धरा की तुम रंगीनी

जान लो पहचान लो |

जब भी प्रेमी प्रेमिका से

मुस्कुरा कर बोलता |

वह उसे तुम सी चकोरी

जानकर रस घोलता |

आज समझी हो नादानी

बात यह पहचान लो |



-उमेश श्रीवास्तव

A poem of Umesh Srivastava


Sunday, December 6, 2020

गोष्ठी

 A poem of Umesh srivastava 

यह गोष्ठी हर जिले,

शहर, गली, मोहल्ले में 

करना चाहता हूँ, इसलिए 

ताकि देख सकूं ,

कि मन का मयूर 

कहाँ तक छलांग मारता है |

या हकीक़त में 

यथार्थ के मुहाने  की 

तस्वीर उभारता है |

वह ड्योढ़ी पर बैठी 

तनया , तन-मन में 

स्वप्न के किस 

आवेग में खोई है |

सच के धरातल से 

दूर कब तक 

उसकी बात जोहती 

पड़ी है 

घर आंगन के 

कोने अतरे में | 


-उमेश श्रीवास्तव 

 A poem of Umesh srivastava 

Thursday, December 3, 2020

हम किसान इस देश के

A poem of Umesh sriasvatav

हम किसान इस देश के

यह माटी मेरा तन है
यह माटी मेरा मन है
हम इसमें मिल जायेंगे
पर झंडा को फहराएंगे
नाम लांछन चाहे दे दो
पर यह माटी मेरी है
मेहनत की हम खाते हैं
इसको नहीं गवाएंगे
मानोगे तुम पक्का जानो
इरादों को तुम पहचानो
मांगों पर मिट जायेंगे
पर झंडा को फहराएंगे

उमेश श्रीवास्तव
A poem of Umesh sriasvatav

यह सड़ी गली कविता

A poem of Umesh chandra srivastava 


 यह सड़ी गली कविता

लिख कर कब तक चलाओगे
बिना लय की
कविता सुना कर
कब तक तुलसी बाबा
का बहिष्कार करोगे
खूंटी पर टंगी
तस्वीर की तरह
तुम्हारी कविता में
न जान है
न रस है
न तत्व है
फिर भी तुम
झुंड बनाकर
उसको बेहतरीन
बनाने पर तुले रहते हो
बस तुम्हारे लोग
उसे सराहते हैं
पढ़ते हैं
बताओ कितने
पाठक बने
तुम्हारी कविता संग्रह के
बताओ
-उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
A poem of Umesh chandra srivastava 

एक बंध

मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ
मैं जरा सा मुस्कुराना चाहता हूँ
जिन्दगी ने दुःख बहुत मुझको दिया
मैं उसे केवल भुलाना चाहता हूँ


काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...