month vise

Sunday, December 6, 2020

गोष्ठी

 A poem of Umesh srivastava 

यह गोष्ठी हर जिले,

शहर, गली, मोहल्ले में 

करना चाहता हूँ, इसलिए 

ताकि देख सकूं ,

कि मन का मयूर 

कहाँ तक छलांग मारता है |

या हकीक़त में 

यथार्थ के मुहाने  की 

तस्वीर उभारता है |

वह ड्योढ़ी पर बैठी 

तनया , तन-मन में 

स्वप्न के किस 

आवेग में खोई है |

सच के धरातल से 

दूर कब तक 

उसकी बात जोहती 

पड़ी है 

घर आंगन के 

कोने अतरे में | 


-उमेश श्रीवास्तव 

 A poem of Umesh srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...