A poem of Umesh srivastava
यह गोष्ठी हर जिले,
शहर, गली, मोहल्ले में
करना चाहता हूँ, इसलिए
ताकि देख सकूं ,
कि मन का मयूर
कहाँ तक छलांग मारता है |
या हकीक़त में
यथार्थ के मुहाने की
तस्वीर उभारता है |
वह ड्योढ़ी पर बैठी
तनया , तन-मन में
स्वप्न के किस
आवेग में खोई है |
सच के धरातल से
दूर कब तक
उसकी बात जोहती
पड़ी है
घर आंगन के
कोने अतरे में |
-उमेश श्रीवास्तव
A poem of Umesh srivastava
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