A poem of Umesh sriasvatav
हम किसान इस देश के
यह माटी मेरा तन है
यह माटी मेरा मन है
हम इसमें मिल जायेंगे
पर झंडा को फहराएंगे
नाम लांछन चाहे दे दो
पर यह माटी मेरी है
मेहनत की हम खाते हैं
इसको नहीं गवाएंगे
मानोगे तुम पक्का जानो
इरादों को तुम पहचानो
मांगों पर मिट जायेंगे
पर झंडा को फहराएंगे
उमेश श्रीवास्तव
A poem of Umesh sriasvatav
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