month vise

Thursday, December 3, 2020

एक बंध

मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ
मैं जरा सा मुस्कुराना चाहता हूँ
जिन्दगी ने दुःख बहुत मुझको दिया
मैं उसे केवल भुलाना चाहता हूँ


No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...