poem by Umesh chandra srivastava
बढ़ो धरा के अमर सपूतों ,
युग फिर तुमसे मांगे है।
भ्रष्ट तंत्र जो व्याप्त हुआ है ,
उसको तुम्हें हटाना है।
कुर्सी पर बैठे जो बंधू ,
देश का सौदा करते हैं।
अपने हित की बात वो करते ,
जनता को बहकाते हैं।
बन जायेगा राम जो मंदिर ,
राम राज्य क्या आएगा !
रामायण घर-घर में वाचन ,
पर परिवर्तन आया क्या ?
वह जो मानस बने प्रवक्ता ,
उनको भी मुद्दा चहिये।
कहिये बात सत्य नहीं है !
वह भी तो हैं रंगे हुए। (जारी कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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