poem by Umesh chandra srivqastava
शीघ्र आ जाओ प्रिये,
स्वागत तुम्हारा हम करें।
ह्रदय स्थल में जो व्यापित ,
ताप को कुछ काम करें।
वैसे फुर्सत कहाँ तुमको ,
काम की धुन में रमें।
तेरे आने से मनों का,
भाव का पुट कम करें।
तुम तो आते ही , ठहरते ,
हो कहाँ -इस वृष्टि में।
दृष्टि से अवलोक करके ,
फुर्र हो जाते भले।
पर समय जो तेरे आने से ,
हुआ निमग्न जो।
उसको रूपों में बसाकर ,
आस की डोरी धरें ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivqastava
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