poem by Umesh chandra srivastava
जब हमारे पास,
कुछ भी नहीं था ,
तब तुम थे।
आज हमारे पास ,
सब कुछ है ,
पर तुम नहीं हो।
बस यादें हैं ,
धड़कन है ,
और मैं हूँ।
मुझे याद है ,
जब तुम सोते में ,
मुझे जगा देते।
और अपने बाँहों का ,
फूलहार डाल,
मुझसे बतियाते ,
पुचकारते ,दुलारते ,
और प्यार करते।
कितना अच्छा लगता।
पर आज कहाँ रहा ,
वह सब।
जो तुम्हारे होने से ,
होता था।
अब कहाँ रही ,
वह प्रेम की टीस ,
जो तुम्हारे होने से ,
खिल उठता था।
अब तो पतझड़ है ,
अंगड़ाई है ,
देहं है ,
और मैं हूँ।
जब हमारे पास,
कुछ भी नहीं था ,
तब तुम थे।
आज हमारे पास ,
सब कुछ है ,
पर तुम नहीं हो।
बस यादें हैं ,
धड़कन है ,
और मैं हूँ।
मुझे याद है ,
जब तुम सोते में ,
मुझे जगा देते।
और अपने बाँहों का ,
फूलहार डाल,
मुझसे बतियाते ,
पुचकारते ,दुलारते ,
और प्यार करते।
कितना अच्छा लगता।
पर आज कहाँ रहा ,
वह सब।
जो तुम्हारे होने से ,
होता था।
अब कहाँ रही ,
वह प्रेम की टीस ,
जो तुम्हारे होने से ,
खिल उठता था।
अब तो पतझड़ है ,
अंगड़ाई है ,
देहं है ,
और मैं हूँ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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