राम का काव्य सुन्दर, सुहावन यहां ,
राम तो हैं रमें ,राममय है जहाँ।
सीता सुन्दर ,लखन भ्रात अद्भुत यहां ,
शत्रुघन की कला , प्रेम अद्भुत रहा।
'औ' भरत की तो बातें न पूछो कभी ,
वह हैं द्रष्टा उन्होंने रचा राम मय।
राम का काव्य सुन्दर, सुहावन यहां।
वाह रे! दशरथ ,कौशल्या ,सुमित्रा यहाँ ,
कैकेई की कला राम ने खूब कही।
उनको माता की श्रेष्ठतम उपाधि दयी ,
राम ही हैं रमे राममय है जहां।
उनका कर्त्तव्य कितना ही सुन्दर रहा ,
बाल्मीकी ने राम को मानव कहा।
तुलसी बाबा ने उनको है ब्रह्म रचा ,
श्रेष्ठ हैं मैथिलि जिनकी साकेत है।
उसमें उर्मिल 'औ' लक्ष्मण का अद्भुत मिला,
उस बहाने उन्होंने रचा ग्रंथ यह।
राम का काव्य सुन्दर, सुहावन यहां।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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