A poem of Umesh chandra srivastava
मैं जीने के लिए,
आया हूँ ,
काया का ,
जाना तँय है।
मगर-
वह जीवन चाहिए ,
जो जाने के बाद ,
भी याद रहे।
कुछ ऐसा हो ,
जिसे लोग ,
जाने के बाद भी ,
सहेज सकें।
चर्चा कर सकें।
वही जीवन ,
जीने आया हूँ।
जहाँ पात्रों की ,
सरसराहट में ,
विचारो की पतंगें ,
उड़ें-लहरायें ,
लेकिन काटें न ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment