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Friday, March 2, 2018

होली गीत

A poem of Umesh chandra srivastava 


 बहुत नीक लागैय ,रंगों की होली ,
मस्ती की होली, ठिठोली की होली।
मौज की बोली 'औ' साली की गोली।
              बहुत नीक लागैय ,रंगों की होली।

दौड़ भाग देवरा करैय ,भौजी हैं डोली ,
साली उचक के डालैय रंगोली।
              बहुत नीक लागैय ,रंगों की होली ,

सुधियों में खोये गए बाबा भांगौड़ी ,
जेठ मारैय चुस्की-यह रंगों की होली ,
              बहुत नीक लागैय ,रंगों की होली ,

इस बार होली में ओनहूँ भी आये ,
मुंबई से रंगों की बोरी भी लाये ,
चहक खेलैय होली उनहूँ लगाए।
छूट उन्हैय पूरी-जहाँ तहाँ पोतैय ,
हर्षित उल्लास की यह रही बोली।
            बहुत नीक लागैय ,रंगों की होली ,

होली त्यौहार केवल प्रेम परस्पर ,
सीमा में होली तो देत है अक्सर ,
प्रेम की बोली 'औ' प्रेम  ठिठौली।
             बहुत नीक लागैय ,रंगों की होली।

उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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