A poem of Umesh chandra srivastava
तुम्हारे बाहं में ,
आनंद का सार ,
मन विहंग -पूरा निस्सार।
तुम्हारे बाहं में ,
आनंद का सार।
कौतुहल , संवेग
आवेग सब विस्तार ,
मगर तुम्हारे बाहं में,
उन सब का निस्सार।
तुम कौन
सरस नीर का
अनमोल रहस्य।
तुम्हारे नीर में
अनुपम
युगबोध का संसार।
तुम्हारे बाहं में ,
आनंद का सार।
तुम्हारे बाहं में ,
आनंद का सार ,
मन विहंग -पूरा निस्सार।
तुम्हारे बाहं में ,
आनंद का सार।
कौतुहल , संवेग
आवेग सब विस्तार ,
मगर तुम्हारे बाहं में,
उन सब का निस्सार।
तुम कौन
सरस नीर का
अनमोल रहस्य।
तुम्हारे नीर में
अनुपम
युगबोध का संसार।
तुम्हारे बाहं में ,
आनंद का सार।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment