A poem  of Umesh chandra srivastava 
जन-मन तुम भयक्रान्त न होना ,
मन दृणज्ञ कर आगे बढ़ना। 
दुष्ट , निशाचर सब भागेंगे ,
खुद पर बस विश्वास तुम करना। 
मिथ्य बात की रेल बनाकर ,
कब तक पटरी पे  दौड़ाएंगे। 
रण मेरी बज उठी लोग की ,
मिथ्याचारी से न डरना। 
उड़ी तश्तरी फिर लौटेगी ,
जुगती का उपहास न करना। 
पूरी तन्मयता से डट कर ,
अपना पूर्ण समर्थन देना। 
बदल रहे जो मिथ्याचारी ,
उन पर कुछ तुम ध्यान न देना। 
अपनी करनी का फल भोगें ,
ऐसा ही विशवास तुम करना। 
बड़े चतुर हैं मिथ्यावादी ,
मिथक बहुत से जोड़ेंगे वह। 
पर तुम दृढ़-दृढ़ज्ञ बन करके ,
उनका बस प्रतिकार ही करना। 
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem  of Umesh chandra srivastava 
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