A poem of Umesh chandra srivastava
अब बिस्तर भी है , पलंग भी है।
सुख भी है, पैसा भी है।
लेकिन हम सबने चैन गंवाई हैं।
मोनू को स्कूल जाना है ,
और मुनिया की पढ़ाई भी है।
बड़ी हो जायेगी मुनिया ,
तो उसकी शादी भी रचवानी है।
मुन्ना से हम-आज भी बेफिक्र हैं ,
वह रात-बिरात चाहे जब लौटे ,
लेकिन मुनिया के लिए चिंतायी हैं।
बराबरी के दर्जे की बात करने वालों।
कहाँ यह बात सुहाई है।
अब बिस्तर भी है , पलंग भी है।
सुख भी है, पैसा भी है।
लेकिन हम सबने चैन गंवाई हैं।
मोनू को स्कूल जाना है ,
और मुनिया की पढ़ाई भी है।
बड़ी हो जायेगी मुनिया ,
तो उसकी शादी भी रचवानी है।
मुन्ना से हम-आज भी बेफिक्र हैं ,
वह रात-बिरात चाहे जब लौटे ,
लेकिन मुनिया के लिए चिंतायी हैं।
बराबरी के दर्जे की बात करने वालों।
कहाँ यह बात सुहाई है।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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