A poem of Umesh chandra srivastava
आज फिर वह हवा रंग में आ गयी ,
राम की बात फिर से जहां छा गयी।
बोल में घोल की वह सभी रंगतें ,
फिर से अपनी छटा को वह बिखरा गयी।
श्वेत अम्बर तना-आसमा देखिये ,
यह धरा आज फिर गुनगुना सी गयी।
बोल-अनबोल सारे चहकने लगे ,
सुर मयी बात की अब घटा छा गयी।
आज फिर वह हवा रंग में आ गयी ,
राम की बात फिर से जहां छा गयी।
बोल में घोल की वह सभी रंगतें ,
फिर से अपनी छटा को वह बिखरा गयी।
श्वेत अम्बर तना-आसमा देखिये ,
यह धरा आज फिर गुनगुना सी गयी।
बोल-अनबोल सारे चहकने लगे ,
सुर मयी बात की अब घटा छा गयी।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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