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Saturday, November 17, 2018

यही रंगशाला यही रंगभूमि -2

A poem of Umesh chandra srivastava 

बहुत रूप सागर के गागर में डूबे ,
ये रिश्ते तो एकदम समाये हुए हैं।
खिला गुल जो आंगन , उसी में हैं लिपटे ,
यह जंजाल सारे दिखाए हुए हैं।

मदों में हैं झूमे , सीना तान चलते ,
यह सारे ही रंग बनाये हुए हैं।
यहाँ कौन कैसे रहे , खुब सहे वह ,
सभी भूमिका तो लिखाये हुए हैं।

यहाँ तक कि बातों में माता-पिता को ,
ललन खुब अब तो छकाए हुए हैं।
यहाँ दुःख दलिद्दर सभी तो मिलेंगे ,
यह सारे मुखौटे लगाए हुए हैं।

किया तुमने क्या-क्या बताएंगे सबकुछ ,
यह तेरे जनाज़े में आये हुए  हैं।
यह बस्ती यहाँ पर करो रोल अपना ,
तो सारे कहेंगे जमाये हुए हैं।


क्रमशः... 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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