month vise

Friday, November 16, 2018

यही रंगशाला यही रंगभूमि

A poem of Umesh chandra srivastava 

यही रंगशाला यही रंगभूमि ,
यहीं रंग में सब जमाये खड़े हैं। 
सभी तो मुसाफिर यहाँ इस जगत में ,
फिर काहे को धुनी रमाये पड़े हैं। 

जरा गौर करके तो देखो-जगत को ,
लिखी पटकथा को जमाये हुए हैं। 
सभी बोलते चलते फिरते यहाँ पे ,
वह संवाद सारे रटाये हुए हैं। 

हुआ जन्म , उत्सव का दस्तूर है भी ,
वह दस्तूर तो बस बनाये हुए हैं। 
हुआ बालपन तो बहुत खेला-कूदा ,
जवानी में कुछ लड़खड़ाए हुए हैं। 

क्रमशः... 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...