A poem of Umesh chandra srivastava 
यहीं रंग में सब जमाये खड़े हैं। 
सभी तो मुसाफिर यहाँ इस जगत में ,
फिर काहे को धुनी रमाये पड़े हैं। 
जरा गौर करके तो देखो-जगत को ,
लिखी पटकथा को जमाये हुए हैं। 
सभी बोलते चलते फिरते यहाँ पे ,
वह संवाद सारे रटाये हुए हैं। 
हुआ जन्म , उत्सव का दस्तूर है भी ,
वह दस्तूर तो बस बनाये हुए हैं। 
हुआ बालपन तो बहुत खेला-कूदा ,
जवानी में कुछ लड़खड़ाए हुए हैं। 
क्रमशः... 
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 
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