A poem of Umesh chandra srivastava
क्या शूर्पणखा जरूरी है
राम का अस्तित्व समझने के लिए।
क्या राम का अस्तित्व
शूर्पनखा बिना अधूरा है।
समझने वाली बात है ,
स्त्री विमर्श के -
इस दौर में।
पुरुष की मनःस्थिति
वही है
जो पहले थी।
विचार करने के लिए
स्त्री पर बात होती है ।
लेकिन , हकीक़त में
स्त्री तो ,
पुरुष के ह्रदय में ही सोती है
पुचकारने , दुलारने
और खेलने के लिए।
स्त्रियाँ - आदि काल से
विमर्श के केंद्र में हैं।
लेकिन यह पुरुष सत्ता
क्या उसे महत्व दे पाया।
समझने वाली बात है।
भ्रम में मत रहो स्त्रियों।
लड़ो-बढ़ो
और मुहं तोड़ जवाब दो।
क्योंकि तुम्हारी महत्ता ,
पुरुष सत्ता से
कम नहीं।
क्या शूर्पणखा जरूरी है
राम का अस्तित्व समझने के लिए।
क्या राम का अस्तित्व
शूर्पनखा बिना अधूरा है।
समझने वाली बात है ,
स्त्री विमर्श के -
इस दौर में।
पुरुष की मनःस्थिति
वही है
जो पहले थी।
विचार करने के लिए
स्त्री पर बात होती है ।
लेकिन , हकीक़त में
स्त्री तो ,
पुरुष के ह्रदय में ही सोती है
पुचकारने , दुलारने
और खेलने के लिए।
स्त्रियाँ - आदि काल से
विमर्श के केंद्र में हैं।
लेकिन यह पुरुष सत्ता
क्या उसे महत्व दे पाया।
समझने वाली बात है।
भ्रम में मत रहो स्त्रियों।
लड़ो-बढ़ो
और मुहं तोड़ जवाब दो।
क्योंकि तुम्हारी महत्ता ,
पुरुष सत्ता से
कम नहीं।
उमेश चन्द्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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